17. After the Liturgy of the Word, offertory song is sung. Meanwhile the ministers place the corporal, purificator, chalice and missal on the altar.
18. It is recommended that the faithful manifest their participation by bringing up the bread and the wine for the Mass, and/or other gifts for the needs of the Church and of the poor.
19. The priest, standing at the altar, takes the pattern with the bread, and the holding it slightly raised above the altar, says in a low voice:
पुरोहित: धन्य है तू, सकल सृष्टि के प्रभु ईश्वर ! यह रोटी, जिसे हम तुझे चढ़ाते हैं, हमें तेरी उदारता से मिली है। यह पृथ्वी की उपज है और मनुष्य के परिश्रम का फल, यह हमारे लिए जीवन की रोटी बन जाएगी।
Then he sets the paten and the bread down on the corporal. If no offertory song is sung, he may say the preceding prayer in an audible voice; at the end the people may answer:
सब: धन्य हो ईश्वर, अनंत काल तक !
20. The deacon, or the priest, pours wine and a little water into the chalice, saying in a low voice:
पुरोहित: इस जल तथा दाखरस के रहस्य द्वारा हम ख्रीस्त के ईश्वरत्व के भागी बन जाएँ, जो हमारे लिए दीन मनुष्य बन गये।
21. Then the priest takes the chalice, and raising it a little above the altar, says in a low voice:
पुरोहित: धन्य है तू, सकल सृष्टि के प्रभु ईश्वर ! यह दाखरस, जिसे हम तुझे चढ़ाते हैं, हमें तेरी उदारता से मिला है। यह दाखलता की उपज है और मनुष्य के परिश्रम का फल, यह हमारे लिए आध्यात्मिक पेय बन जाएगा।
Then he places the chalice on the corporal. If no offertory song is sung, the priest may say the above prayer in an audible voice; at the end the people may answer:
सब: धन्य हो ईश्वर, अनंत काल तक !
22. The priest bows and says in a low voice:
पुरोहित: हे प्रभु, हम अपने को दीन-हीन समझते और हृदय से पश्चात्ताप करते हैं, हम पर दया कर। हे प्रभु ईश्वर, तू आज हमारा यह बलिदान ग्रहण कर।
23. He may now incense the offerings and the altar. Then the deacon or a minister incenses the priest and the congregation.
24. The priest washes his hands saying in a low voice:
पुरोहित: हे प्रभु, मेरा अपराध धो डाल और मुझ पापी को शुद्ध कर दे।
25. standing at the centre of the altar, and facing the people, the priest extends and then joins his hands, saying:
पुरोहित: भाइयो और बहनो, प्रार्थना कीजिए कि सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर मेरा और आप लोगों का यह बलिदान स्वीकार करे।
(All stand)
सब: प्रभु अपने नाम की स्तुति तथा महिमा के लिए और हमारे तथा अपनी समस्त पवित्र कलीसिया के लाभ के लिए आपके हाथों से यह बलिदान स्वीकार करे।
अर्पण प्रार्थना
26. With hands extended, the priest sings or says the prayer over the gifts. The people respond:
सब: आमेन।
27. The Priest may choose the Eucharistic prayer according to the norms proper to each season.
With hand extended he says:
पु० :प्रभु आप लोगों के साथ हो।
सब: और आपकी आत्मा के साथ।
The priest raises his hands saying:
पु० : प्रभु में मन लगाइए।
सब: हम प्रभु में मन लगाए हुए हैं।
Lowering his hands and keeping them extended the priest says:
पु० :हम अपने प्रभु ईश्वर को धन्यवाद दें।
सब: यह उचित और न्यायसंगत है।
With extended hands the priest sings or says the preface. And at the end of the preface the priest joins hands. Together with the people he says or sings:
पु० :हे परम पवित्र पिता, यह वास्तव में उचित और न्यायसंगत है, हमारा कर्त्तव्य तथा कल्याण है कि हम सदा और सर्वत्र तेरे प्रिय पुत्र येसु खीस्त के द्वारा तुझे धन्यवाद दें। ये ही हैं तेरे आदि-शब्द, जिनके द्वारा तूने सृष्टि की रचना की, जिन्हें तूने हमारे मुक्तिदाता तथा उद्धारकर्त्ता के रूप में भेजा, इन्होंने पवित्र आत्मा की शक्ति से देह धारणकर कुँवारी से जन्म लिया। इन्होंने क्रूस पर अपनी भुजाएँ पसारी और दुःख भोगा, ताकि मृत्यु के बंधनों को तोड़कर ये पुनरुत्थान प्रकट करें। इस भाँति इन्होंने तेरी इच्छा पूरी करके तेरे लिए एक पवित्र प्रजा प्राप्त की है। इसलिए, स्वर्गदूतों और सब संतों के स्वर में स्वर मिलाकर हम भी तेरी महिमा का बखान करते हैं :
सब: पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु विश्वमण्डल के ईश्वर ! स्वर्ग और पृथ्वी तेरी महिमा से परिपूर्ण हैं। सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना ! धन्य हैं वे, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना !
28. The celebrant with hands extended, says:
पु० :हे प्रभु, तू वास्तव में पवित्र है, सारी पवित्रता का स्रोत है।
29. He joins his hands and then holding them outstretched over the offering, he says:
पु.पु० :हम तुझसे प्रार्थना करते हैं : तू इन उपहारों को अपने आत्मा के संस्पर्श से पवित्र कर दे
The chief celebrant joins his hands and signing the host and the chalice, he says:
कि ये हमारे प्रभु येसु खीस्त के शरीर तथा + रक्त बन जाएँ।
He joins hands.
30. The words of consecration are pronounced distinctly as their meaning demands.
जब वे स्वेच्छा से मृत्यु के लिए सौंपे गए,
Holding the host with both hands slightly raised above the altar, he says:
उन्होंने रोटी ली, तुझे धन्यवाद दिया और रोटी तोड़कर उसे अपने शिष्यों को देते हुए कहा :
He bows slightly.
तुम सब इसे लो और इसमें से खाओ, क्योंकि यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए बलि चढ़ाया जाएगा।
He shows the consecrated host to the faithful, place it on the paten and genuflects ( or bows).
31. Then he continues:
इसी भाँति, भोजन के बाद
He takes the chalice with both hands; holding it slightly elevated, he continues:
उन्होंने कटोरा लिया, तुझे धन्यवाद दिया और उसे अपने शिष्यों को देते हुए कहा :
He bows slightly.
तुम सब इसे लो और इसमें से पिओ, क्योंकि यह मेरे रक्त का कटोरा है, नवीन और अनंत व्यवस्थान का रक्त, जो तुम्हारे और बहुतों के पापों की क्षमा के लिए बहाया जाएगा। तुम मेरी स्मृति में यह करो।
He shows the chalice to the faithful, replaces it on the corporal and genuflects ( or bows).
32. He then says:
पु० :विश्वास का रहस्य।
The faithful respond with one of the following acclamations:
सब:
33. With hands extended the celebrant says:
पु.पु० :इसलिए, हे प्रभु, हम ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरुत्थान की स्मृति में तुझे जीवन की रोटी और मुक्ति का कटोरा चढ़ाते हैं; हम तुझे धन्यवाद देते हैं कि तूने हमें अपने सम्मुख उपस्थित होने और अपनी सेवा करने का सौभाग्य प्रदान किया है। हमारा नम्न निवेदन है कि हम सब खीस्त का शरीर और रक्त ग्रहण करके पवित्र आत्मा के द्वारा एकता के सूत्र में बँधे रहें।
पु०1 :हे प्रभु, हमारे संत पिता (…) हमारे धर्माध्यक्ष (…) और सभी याजकों के साथ विश्व भर में फैली अपनी कलीसिया की सुधि ले, तथा झसे प्रेम में सिद्ध बना दे।
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In Masses which are offered for the dead the following may be added:
पु० :हे प्रभु, अपने सेवक (अपनी सेविका) (नाम) की सुधि ले जिनको तूने (आज) इस लोक से अपने यहाँ बुला लिया है, इन्हें यह वर दे कि जैसे ये बपतिस्मा में तेरे पुत्र की मृत्यु के (की) सहभागी हुए थे (हुई थीं), वैसे ही उनके पुनरुत्थान का भी सौभाग्य प्राप्त करें।
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पु०2 :हमारे उन भाई-बहनों की भी सुधि ले, जो पुनरुत्थान की आशा में परलोक सिधार चुके हैं, उन्हें और सभी मृतकों को अपने दर्शन का सौभाग्य प्रदान कर । हम सब पर दयादृष्टि डाल कि हम भी अनंत जीवन के सहभागी बनें और ईश्वर की माता धन्य कुँवारी मरियम, उनके वर धन्य योसेफ, धन्य प्रेरितों तथा सब संतों के साथ, जो युग-युग में तेरे प्रति विश्वस्त बने रहे, तेरी स्तुति और महिमा कर सकें
He joins his hands.
तेरे पुत्र येसु खीस्त के द्वारा।
34. The celebrant takes the chalice and the paten with the hosts, and lifting them up, sings or says in a clear voice.
पु.पु० :इन्हीं प्रभु खीस्त के द्वारा, इन्हीं के साथ और इन्हीं में, हे सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर, पवित्र आत्मा के साथ, सारा गौरव तथा सम्मान युगानुयुग तेरा ही है।
The faithful reply:
सब: आमेन।
प्रभु की प्रार्थना
35. The priest sets down the chalice and paten, and with hands joined, sings or says one of the following:
पुरोहित:
He extends his hands and with the people he continues:
सब: हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में, वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो। हमारा प्रतिदिन का आहार आज हमें दे और हमारे अपराध हमें क्षमा कर जैसे हम भी अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न डाल, परन्तु बुराई से बचा।
36. The priest continues alone:
पुरोहित: हे प्रभु, हम तुझसे प्रार्थना करते हैं : सभी बुराइयों से हमें बचा और इस जीवन में हमें कृपापूर्वक शांति प्रदान कर। हम तेरी दया से सदा पाप से दूर और हर विपत्ति से सुरक्षित रहें और उस दिन की प्रतीक्षा करते रहें, जब हमारे मुक्तिदाता येसु खीस्त फिर आकर हमारी धन्य आशा पूरी करेंगे।
He joins his hands. The priest and faithful together conclude with the acclamation:
सब: क्योंकि तेरा राज्य, तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा अनंत काल तक बनी रहती है।
37. The priest with hands extended says aloud:
पुरोहित: हे प्रभु येसु खीस्त ! तूने अपने प्रेरितों से कहा है : मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़ जाता हूँ , अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। ' तू हमारे पापों पर नहीं, अपनी कलीसिया के विश्वास पर दृष्टि डाल, और कृपापूर्बक उसे शांति तथा एकता प्रदान कर (he joins his hands) तू युगानुयुग जीता और राज्य करता है।
सब: आमेन।
38. The priest extending and joining hands says:
पुरोहित: प्रभु की शांति सदा आपलोगों के साथ हो।
सब: और आपकी आत्मा के साथ।
39. Then the deacon or the priest may add:
पुरोहित: परस्पर शांति-अभिवादन कीजिए।
All make some appropriate sign of peace and love.
40. The priest gives the sign of peace to the deacon or minister. He then takes the host and breaks it over the paten. He places a small piece in the chalice, saying in a low voice:
पुरोहित: हमारे प्रभु येसु खीस्त के शरीर तथा रक्त का यह सम्मिश्रण, जिसे हम ग्रहण करते हैं, हमें अनंत जीवन प्रदान करे।
41. Meanwhile the faithful sing or say:
सब: हे ईश्वर के मेमने, तू संसार के पाप हर लेता है - हम पर दया कर।
हे ईश्वर के मेमने, तू संसार के पाप हर लेता है - हम पर दया कर।
हे ईश्वर के मेमने, तू संसार के पाप हर लेता है - हमें शांति प्रदान कर।
This may be repeated (or shortened) until the breaking of the bread is finished, but the last phrase is always: हमें शांति प्रदान कर।
42. The priest joins his hands and says in a low voice either of the following prayers:
पुरोहित: हे प्रभु येसु खीस्त, जीवंत ईश्वर के पुत्र, तूने पिता की इच्छा के अनुसार और पवित्र आत्मा के सहयोग से अपनी मृत्यु द्वारा संसार को जीवन प्रदान किया है। अपने इस परम पवित्र शरीर तथा रक्त द्वारा मेरे पापों को क्षमा कर और मुझे हर बुराई से बचा; मैं सदा तेरी आज्ञाओं का पालन करता रहूँ और तुझसे कभी अलग न होऊँ।
अथवा
हे प्रभु येसु खीस्त, मैं तेरा शरीर तथा रक्त ग्रहण करने वाला हूँ, यह मेरे लिए विचार और दण्ड का कारण न बने, बल्कि तेरी दया से मेरा तन-मन सुरक्षित और स्वस्थ रहे।
कम्यूनियन-वितरण:
43. The priest genuflects. Taking the host, he raises it slightly over the paten, and facing the people, says aloud:
पुरोहित: देखिए, ईश्वर का मेमना ! इन्हें देखिए, जो संसार के पाप हर लेते हैं। धन्य हैं वे, जो मेमने के भोज में बुलाये गये हैं।
With the people he says once only:
सब: हे प्रभु ! मैं इस योग्य नहीं हूँ कि तू मेरे यहाँ आये, किन्तु एक ही शब्द कह दे और मेरी आत्मा चंगी हो जाएगी।
44. Facing the altar, the priest says in a low voice:
पुरोहित: ख्रीस्त का सरीर अनंत जीबन के लिए मेरी रक्ष्या करता रहे।
He reverently consumes the body of Christ. Then he takes the chalice and says in a low voice:
पुरोहित: ख्रीस्त का रक्त अनंत जीबन के लिए मेरी रक्षा करता रहे।
He reverently drinks the precious blood.
45. Then he takes the paten or ciborium and goes to the communicants. He takes the host raises it a little, and shows it saying:
पुरोहित: ख्रीस्त का शरीर। (अथवा: ख्रीस्त की देह)
सब: आमेन।
When a deacon gives communion, he does the same.
46. When the priest drinks the precious blood, the communion song begins.
47. when the distribution of communion is finished, the priest or deacon wipes the paten over chalice, and then purifies the chalice itself.
While purifying the sacred vessels, the priest says:
पुरोहित: हे प्रभु , जो संस्कार हमने ग्रहण किया है , बोह हमारी आत्मा को पबित्र करे ; और इस लोक का यह बरदान हमारे लिए परलोक की औसध बन जाए।
48. The priest may return to the chair. A period of silent thanksgiving may now be observed, or a psalm or hymn of praise may be sung.
49. Then standing at the chair or at the altar, the priest says:
पु० - हम प्रार्थना करें।
Priest and faithful pray in silence for a while. Then the priest extends his hands and sings or says the prayer after communion. At the end the people answer:
सब: आमेन।
50. If there are any short announcements, they are made now.
51. The dismissal follows. The priest, facing the people, extends his hands and says or sings:
पुरोहित: प्रभु आप लोगों के साथ हो।
सब: और आपकी आत्मा के साथ।
Priest gives the blessing, saying:
पुरोहित: सर्वशक्तिमान् ईश्वर, पिता और पुत्र + और पवित्र आत्मा आपलोगों को आशीर्वाद प्रदान करे।
सब: आमेन।
52. The deacon or priest himself with hands joined sings or says:
पुरोहित: आपलोग विदा लें, मिस्सा सम्पन्न हुआ।
(अथवा) जाइए और प्रभु के सुसमाचार की घोषणा कीजिए।
(अथवा) आप लोग शांति में विदा लें और अपने जीवन द्वारा प्रभु की महिमा करें।
(अथवा) आपलोग शांति में विदा लें।
सब: ईश्वर को धन्यवाद।
53. The priest kisses the altar as at the beginning of the Mass. Then he makes the customary reverence with the ministers and returns to the sacristy.
54. If any liturgical service follows immediately, the rite of dismissal is omitted.